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कौन जाने अब कहाँ है चांदनी

चाँद गुम है और धुआँ है चाँदनी,,
कौन जाने अब  कहाँ  है चाँदनी,,

चार दिन की मौज थी वो देख ली.
अब तो  खाली दास्तां  है  चांदनी,,

रह गई है  अब यहां तो रात ही 
तू जहाँ  है बस  वहाँ  है  चांदनी,,

चाँद फिर भी ठीक लगता है मुझे,
हद से ज्यादा बद गुमा है चांदनी,,

भर गया है उस का दामन नूर से,
आज जिसके दरमियाँ है चांदनी,,

इक वहम सा रह गया है आज भी,
सोचता  हूँ  की  यहां  है  चाँदनी,,

प्रेमल नूराना......✍🏻

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4 Comments

लाजवाब गज़ल 👌👌

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Niraj Pandey

30-Oct-2021 07:57 PM

वाह लाजवाब

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Zakirhusain Abbas Chougule

30-Oct-2021 03:37 PM

Nice

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